Vindhyachal Mandir: मां विंध्यवासिनी की रोज होती हैं चार आरतियां, जानें वजह और खासियत


रिपोर्ट- मंगला तिवारी

मिर्जापुर. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्यवासिनी धाम आदि काल से शक्ति आराधना और साधना का प्रमुख केंद्र बिंदु रहा है. यह दक्षिण और वाममार्गी साधकों के लिए सदैव से उपयुक्त शक्ति धाम माना जाता रहा है. इसके अलावा मां विंध्यवासिनी महाराष्ट्र, राजस्थान समेत दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों के परिवारों की कुलदेवी हैं. जबकि यहां आम भक्तों के साथ ही राजनैतिक परिवार भी श्रद्धा भाव से मां की चौखट पर मत्था टेक समृद्धि की कामना करते हैं. विंध्य पर्वत पर विराजमान जगतजननी माता विंध्यवासिनी की प्रतिदिन चार रूपों में आरती होती है, जो जीवन के चार पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष को प्रदान करती है.

मिर्जापुर से 8 किलोमीटर दूर विंध्याचल शहर में गंगा के तट पर शक्ति स्वरूपा मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. मान्यता है कि उन्हें मां का दर्जा देकर भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा ने पूजा की थी. विंध्याचल धाम में मां के बाल रूप से लेकर वृद्धावस्था तक के दर्शन होते हैं. आदिकाल से ही माना जाता है कि मां के इन चार स्वरूप दर्शन मात्र से भक्तों के सभी दुःख दूर हो जाते हैं. मां विंध्यवासिनी को मंगला आरती, राजश्री आरती, दीपदान आरती, बड़ी आरती के माध्यम से चार अलग-अलग रूपों में दर्शन होते हैं.

आरती में मां का होता है अलग-अलग स्वरूप
वहीं, विंध्य पंडा समाज के अध्यक्ष पंकज द्विवेदी ने बताया कि मां विंध्यवासिनी की आरती में सम्मिलित होने से सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. मंगल दोष, शादी विवाह, वैभव, पुत्र प्राप्ति से लेकर मोक्ष प्राप्ति तक सभी प्रकार की आकांक्षाओं को लेकर भक्त मां भगवती की आराधना में सम्मिलित होते हैं और मां सभी का कल्याण करती है. मां विंध्यवासिनी के श्रृंगारिया रघुवर दयाल उपाध्याय ने बताया कि मां की सुबह से लेकर रात तक में चार बार आरती होती है. प्रत्येक आरती में मां का अलग-अलग स्वरूप होता है. जिसमें सुबह बाल्या वस्था, दोपहर में युवावस्था, शाम में प्रौढ़ावस्था और रात में वृद्धावस्था का स्वरूप होता है. आदि काल से चली आ रही मान्यता के अनुसार मां भगवती का हर स्वरूप क्रमशः धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक होता है.

मंगला आरती (प्रातः काल)
मां विंध्यवासिनी की प्रथम आरती ब्रह्म मुहूर्त में प्रातः चार की जाती है. बाल स्वरूप की होने वाली इस आरती को मंगला आरती कहते हैं. इसमें मां विन्ध्यवासिनीं का स्वरुप बाल्यावस्था का होता है. इस दौरान श्रृंगार में मां कोई आभूषण धारण नहीं करती. इस आरती के पश्चात मां विंध्यवासिनी के बाल्य स्वरूप के दर्शन मात्र से भक्तों को धर्म की प्राप्ति के साथ-साथ उनका भविष्य मंगलमय होता है.

राजश्री आरती (दोपहर):
मध्यान्ह बारह बजे मां विंध्यवासिनी के युवा स्वरूप की द्वितीय आरती होती है, जिसे राजश्री आरती कहा जाता है. इसमें मातारानी का स्वरूप राज राजेश्वरी युवावस्था का होता है. इस समय मां विंध्यवासिनी का भव्य श्रृंगार किया जाता है, जिसमें आभूषण धारण किए मां चार पुरुषार्थ के द्वितीय सोपान अर्थ को प्रदान करती हैं. मां विंध्यवासिनी के इस स्वरूप का दर्शन करने से भक्तों को अर्थ अर्थात समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है. उसे धन से जुड़ी कभी कोई परेशानी नहीं होती. जबकि वैवाहिक जीवन भी खुशहाल रहता है.

दीपदान आरती (संध्या काल):
शाम सात बजे मां की तृतीय (छोटी) आरती होती है, जिसे दीपदान आरती कहते हैं. इस दौरान भव्य सजावट के साथ ही माता आभूषणों को धारण किए रहती हैं. इस दौरान मां विंध्यवासिनी का स्वरुप प्रौढ़ावस्था का होता है. वहीं, सांयकाल 7 से 8 बजे आदिशक्ति जगतजननी मां विंध्यवासिनी प्रौढ़ावस्था के रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं. मां के इस स्वरूप के दर्शन से भक्तों को पुत्र की प्राप्ति होती है.

बड़ी आरती (रात्रि):
रात्रि साढ़े नौ बजे बड़ी आरती की जाती है, जिसमें जगत जननी की वृद्धावस्था के स्वरूप में भव्य श्रृंगार किया जाता है. मां के इस इस स्वरूप को मोक्षप्रदायिनी कहा जाता है. इस स्वरूप के दर्शन व आरती में शामिल होने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, जो जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त होकर देवी के श्री चरणों में स्थान प्राप्त करता है. ( नोट-यह खबर मान्‍यताओं पर आधारित है. न्‍यूज़ 18 इसकी पुष्टि नहीं करता. )

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