UP: स्वदेशी ‘ठठेरा कला’ को नया आयाम दे रहे अलीगढ़ के अदनान, छोड़ी विदेशी नौकरी


रिपोर्ट- वसीम अहमद

अलीगढ़: ‘कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता जरा एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो.’ इस पंक्ति को अलीगढ़ के अदनान खान सच साबित कर दिया है. अदनान खान की मेहनत और लगन ने साबित कर दिया कि, अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं.

दरअसल अलीगढ़ के अदनान खान यूके (लंदन) की नौकरी छोड़कर स्वदेश लौटे हैं. स्वदेश लौटे अदनान ने ना सिर्फ अपनी खुद की कंपनी शुरू की बल्कि सदियों पुरानी स्वदेशी ठठेरा कला को भी नया आयाम दिया. अदनान खान मजदूरी पर बर्तन बनाने वाले कारीगरों से एंटीक शोपीस बनवा कर देश-विदेश में सप्लाई करते हैं. जिससे ठठेरा कला के कारीगरों को बेहतर इनकम होती है. अदनान इन करीगारों से एंटीक शोपीस और क्रॉकरी तैयार करवाते हैं. जिसकी सप्लाई देश विदेश के होटालों में होती है. कंपनी के जरिए उन कारीगरों को भी कमाई का बेहतर जरिया मिल गया है, जो अब तक दुकानों पर बर्तन पंहुचा कर थोड़े-बहुत पैसों से घर का गुज़ारा करते थे.

विदेश में 20 लाख का पैकेज छोड़ा
बता दें कि अलीगढ़ के मेडिकल रोड पर स्थित नाज़ प्लाजा अपार्टमेंट के निवासी अदनान ने 2018 में लंदन से एमबीए किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद 20 लाख के पैकेज पर वहीं नौकरी शुरू कर दी थी. NEWS 18 LOCAL से बात करते हुए अदनान बताते हैं कि, शुरू से ही अपने देश मे कारोबार करने की इच्छा थी. इस इच्छा को पूरी करने के लिए लंदन की नौकरी छोड़ कर स्वदेश अपने घर लौटा और खुद के कारोबार शुरू करने के प्रयास मे लग गया. सामने मुश्किलें थीं लेकिन हौसला बुलंद था. इसके बाद अदनान ने मुरादाबाद मे ठठेरा कला को बारीकी से समझा कारीगरों के बनाए पीतल और तांबे के बर्तनों को नया लुक देकर मार्केट में उतारना शुरू कर दिया.

2019 में कंट्री क्राफ्ट नाम से शुरू की कंपनी
अदनान बताते हैं कि शुरुआत के समय शहर-शहर घूम कर कंपनी का प्रचार करते थे. कंपनी बनाने के बाद मार्केट की चुनौतियों का सामना किया. पैसा इतना था नहीं कि किसी एजेंसी को हायर कर लें. ऐसे समय में दोस्तों के साथ शहर-शहर जाकर रात में दीवारों पर पोस्टर चस्पा कर कंपनी का प्रचार करते थे. 6 महीने के कठिन प्रयास के बाद सफलता मिली. होटल रेस्टोरेंट से आर्डर मिलने लगे. फिर अदनान की कंपनी धीरे-धीरे तरक्की करने लगी.

आज अदनान की कंपनी का 30 लाख रुपया से ऊपर टर्नओवर है. आज के दौर में मशीनों से बर्तन बन रहे हैं. लेकिन अदनान बर्तन व एंटीक शोपीस हाथ से बनवाते हैं. हाथ से बने बर्तनों का उद्देश्य सिर्फ ठठेरा कला को जीवित रखना है.वहीं इससे होने वाली कमाई का एक हिस्सा कारीगरों की वेलफेयर सोसाइटी को भी जाता है.

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