UP News: मुरादाबाद के इस युवक ने कूड़े-कचरे से बना डाली ईट, जानिए इसकी खासियत


रिपोर्ट- पीयूष शर्मा

मुरादाबाद. मुरादाबाद के बुद्ध विहार के रहने वाले प्रदीप गुप्ता को यह पेटेंट कचरे से ईट बनाने की नई तकनीक विकसित करने के लिए मिला है. यूनिवर्सिटी से 2 लाख रुपए की सीट मनी स्वीकृति भी दी गई है. पेटेंट के लिए 2020 में इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स विभाग,आईपीआर में अप्लाई किया था. इस पेटेंट में कचरे से सीमेंटेड ईट आरसीसी ब्रिक्स बनेगी. इससे ना केवल शहरी कचरे का निस्तारण होगा, बल्कि सीमेंटेड ईटें बनने से आरसीसी ब्रिक्स की लागत भी कम होगी. इन ईंटों का निर्माण भवन निर्माण डिवाइडर और फुटपाथ बनाने में किया जा सकेगा.

प्रदीप गुप्ता ने न्यूज 18 लोकल को जानकारी दिया. बताया कि वह 2018 में दिल्ली गए थे. दिल्ली में ट्रंचिंग ग्राउंड वाला कूड़े का पहाड़ देखा. देखने के बाद उन्हें लगा कि यह तो दिल्ली शहर के नाम पर एक धब्बे की तरह है. तो उनके दिमाग में आईडिया आया कि क्यों ना कुछ ऐसा किया जाए. जिससे इस कूड़े का इस्तेमाल किया जा सके और पर्यावरण के अनुकूल भी रहे.

इन ईंटों का निर्माण भवन निर्माण डिवाइडर और फुटपाथ बनाने में किया जा सकेगा.

प्रदीप 2019 तक इस कार्य में लगे रहे
दिल्ली से वापस आने के बाद प्रदीप गुप्ता यही सोचते रहे कि इस कचरे का इस्तेमाल करना है. तो वह 2019 तक इस कार्य में लगे रहे. उन्होंने एक ऐसी विधि विकसित की. जिसमें कूड़े का इस्तेमाल इस तरह से किया गया की वो कूड़ा कभी किसी मानव के संपर्क में ना आ पाए. उन्होंने बताया कि इससे पहले जो कूड़े कचरे के ईटें और प्रोडक्ट बनाए गए थे. उनमें कूड़ा कचरा काम करने वाले व्यक्तियों के संपर्क में आता था और हवा के भी संपर्क में रहता था.

कूड़े को पीसकर पाउडर बनाया 
उन्होंने कूड़े के छोटे-छोटे ब्लॉक बनाए और कूड़े को पिसा गया. उसका पाउडर बनाया गया. पाउडर बनाने के बाद सीमेंट या कोई अन्य केमिकल मिलाकर कई एक्सपेरिमेंट किए. उसके बाद यह ब्लॉक बनाएं और ब्लॉक इस तरह से रखें है कि बाहर से देखने में यह आम ईटों की तरह ही दिखती है. यह एक पर्यावरण से अनुकूल है और इसका कूड़ा पर्यावरण के संपर्क में भी नहीं आएगा.

2019 में ही कर दिया था आवेदन
ओरिजिनल सीमेंट से बनी ईट और इस ईट की दावत बराबर है. यह तकनीक प्रदीप गुप्ता ने 2019 में ही तैयार कर लिया था. 2019 में ही इसके लिए आवेदन कर दिया था. 2020 में यह पेटेंट पब्लिश हो गया था. उसके बाद 2022 में पेटेंट विभाग ने प्रदीप गुप्ता को इसका पेटेंट दे दिया.

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