अतीक का बेटा असद, उमेश पाल की हत्या के लिए उतावला था। यूं तो उमेश की हत्या के लिए महीनों से प्लानिंग चल रही थी। दो महीनों से रेकी भी कराई जा रही थी, लेकिन अतीक के गुर्गों को कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। इसके बाद असद ने अपने हाथ में कमान ली। उसी ने सब कुछ मैनेज करना शुरू किया। वह अतीक और अशरफ से लगातार संपर्क में रहा। सदाकत, गुलाम और गुड्डू मुस्लिम हर कदम पर उसके साथ खड़े थे।
असलहा और खर्च की जिम्मेदारी असद को दी गई
बरेली जेल में 11 फरवरी को अशरफ से मीटिंग के बाद यह तय हो गया कि असद की देखरेख में उमेश को मारा जाएगा। रेकी असलहों और खर्च समेत अन्य बातों की जिम्मेदारी भी असद को भी सौंपी गई। बरेली से लौटने के बाद असद सबसे पहले धूमनगंज के नियाज अहमद से मिला। उसे यह जिम्मेदारी दी गई कि उमेश जब भी बाहर निकलेगा, वह पीछा करेगा। पल-पल की जानकारी नियाज को इंटरनेट कॉलिंग के जरिये असद को देनी थी।
उमेश के पड़ोसी मो. शजर से कहा कि उमेश घर पर रहते हुए कहां बैठता, कौन कौन उससे मिलने आता है, वह बाहर कितने बजे निकला, इसकी जानकारी दे। शजर को आईफोन भी दिया। उस पर पहले से ही कुछ नंबर फीड थे। उन्हीं नंबरों पर शजर को जानकारी देनी थी। अरशद कटरा से भी कचहरी के आस पास उमेश की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा गया था। इसके साथ अतीक के घर पर हत्या से संबंधित एक मीटिंग 12 फरवरी को हुई है। अन्य लोगों के साथ साथ नियाज, शजर और अरशद कटरा भी मीटिंग में शामिल हुए थे।
15 फरवरी को हुआ था पहला प्रयास
पुलिस सूत्रों के मुताबिक 13 फरवरी से उमेश पर नजर रखनी शुरू हो गई। 15 फरवरी को हत्या की पहली कोशिश की गई। शूटर पूरी तरह से तैयार थे लेकिन मौका नहीं मिल पाया। इसके बाद अतीक के घर पर फिर बैठक हुई। असद ने रेकी करने वाले नियाज और शजर को डांटा भी। कहा अगली बार सटीक सूचना होनी चाहिए। इसके बाद 21 फरवरी को दूसरी कोशिश की गई लेकिन वह भी फेल हो गई। 22 को फिर घर में मीटिंग हुई।
कचहरी से लौटते समय हमले का फैसला
24 फरवरी को उमेश को कचहरी जाना था। यह बात सभी को मालूम थी। मीटिंग में निर्णय लिया गया कि इसी दिन उमेश का अंतिम दिन होना चाहिए। कचहरी से लेकर उसके घर तक कहीं भी मौका मिलेगा, उमेश को मार दिया जाएगा। वही हुआ भी कचहरी से लौटते हुए उमेश के घर पर ही हमला किया गया। उमेश के साथ साथ सिपाही राघवेंद्र सिंह और संदीप निषाद भी मारे गए।