शनिवार को साढ़े तीन सौ वर्षों से चली आ रही लोकपरंपरा के अनुसार टेढ़ीनीम स्थित आवास पर पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के निर्देशन में बाबा व गौरा की प्रतिमा का रुद्राभिषेक हुआ। पं. वाचस्पति तिवारी ने सपत्नीक अनुष्ठान संपन्न कराया।
दोपहर में फलाहार का भोग लगाया गया। भोग आरती के बाद संजीवरत्न मिश्र ने बाबा और मां गौरा की चल प्रतिमा का राजसी शृंगार कर विशेष आरती उतारी। शाम को मंगल गीतों के साथ परंपरा की शुरुआत हुई।
बाबा विश्वनाथ की रजत प्रतिमाओं के साथ सभी प्रतिमाओं को महाशिवरात्रि पर पूजन के बाद महेंद्र प्रसन्ना ने शहनाई की मंगल ध्वनि पेश की। रात्रि में मंदिर में चारों प्रहर की विशेष आरती पं. शशिभूषण त्रिपाठी गुड्डू महाराज ने संपन्न कराई। मंदिर से लेकर टेढ़ीनीम तक चारों प्रहर की आरती का दीपक लाने और ले जाने का सिलसिला भी चलता रहा।
पूर्व महंत के आवास पर दोपहर में मातृका पूजन से लेकर विवाह तक की परंपरा का निर्वाह हुआ। ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के बीच सभी देवी देवताओं से शिव विवाह में शामिल होने का अनुरोध किया। भोर में पांच बजे विवाह की प्रक्रिया पूरी हुई। तीन मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर माता के गौना की रस्म निभाई जाएगी।