OPINION: बांके बिहारी मंदिर में भीड़ के सामने जब मैनेजमेंट हुआ फेल, लगातार हो रहे ऐसे हादसों से खड़े हुए सवाल


हाइलाइट्स

तीर्थस्थलों पर लगातार हो रहे हादसों से कई सवाल उठ रहे हैं
भविष्य में ऐसे हादसे न हों, इसके लिए नई व्यवस्था की जरूरत है

मथुरा. वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी की रात गहरा रही थी. यशोदा के कान्हा का जन्म हो चुका था. बांके बिहारी मंदिर के अंदर और बाहर खड़े हज़ारों भक्तों की भक्ति चरम पर थी. साल में सिर्फ़ एक बार जन्माष्टमी पर होने वाली मंगला आरती चल रही थी. मंगला आरती के बारे में मान्यता है “जो करे मंगला वो कभी ना हो कंगला”. ज़ाहिर है वहां मौजूद कोई भी भक्त इस मौक़े को गंवाना नहीं चाहता था. इसी वजह से भीड़ कम होने की बजाए बढ़ रही थी. तभी कुछ कल्पना से परे हुआ. मंदिर के अंदर भीड़ में खड़ा एक शख्स बेहोश होकर गिर गया. बस इससे मंदिर के अंदर ज़बरदस्त भीड़ में पैनिक हुआ. घबराहट में लोग बाहर निकलने की कोशिश करने लगे और भगदड़ जैसे हालात बन गए.

प्रशासन और पुलिस ऐसे मौक़े में जिन हालातों से बचने की पूरी तैयारी करती है, वो सिस्टम फ़ेल हो गया था. मंगला आरती के बाद मची इस भगदड़ ने 2 लोगों की जान ले ली. आधा दर्जन लोग घायल भी हुए. इस हादसे की वजह भारी भीड़ का मंदिर की आरती में शामिल होना बताया गया. दावा किया गया कि ज़्यादा भीड़ होने की वजह से वहां मौजूद कुछ श्रद्धालुओं को सांस लेने में तकलीफ़ हुई, जिससे भगदड़ मच गई. प्रशासन भी सवालों के घेरे में हैं कि आखिर क्यों इतनी भीड़ को मंदिर में घुसने दिया गया? सवाल ये नहीं है कि मंदिर में भगदड़ क्यों मची, बल्कि बहस इस बात की है कि बार-बार मंदिरों में होने वाले हादसों से हम सबक़ कब सीखेंगे?

ख़ास महत्व रखने वाले तीर्थस्थलों में जाने वाले भक्तों की मनोदशा एकदम अलग होती है. वो भक्तिभाव से भरपूर होकर वहां पहुंचते हैं. जैसे खाटू श्याम आने वाले श्रद्धालु यही जयकार लगाते हुए मंदिर आते हैं कि.. हारे का एक ही सहारा, खाटू श्याम हमारा. जब भक्त इस भाव से अंदर आता है तो वो अपने आप को भगवान की भक्ति में तल्लीन कर चुका होता है और प्रशासन के साथ पुलिस की जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाती है.

खाटू श्याम मंदिर में भी तीन महिलाओं की हुई थी मौत
खाटू श्याम जी के मंदिर में भी कुछ दिन पहले ही 8 अगस्त को ऐसी ही लापरवाही हुई थी. राजस्थान के सीकर के खाटू श्याम मंदिर में मची भगदड़ में 3 महिला श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि दर्जन भर से ज़्यादा श्रद्धालु घायल हो गए. ये हादसा उस वक़्त हुआ जब कई घंटे के इंतज़ार के बाद सुबह कपाट खुलने थे. मंदिर में आरती देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ी और भगदड़ मच गई.

मंदिरों में भगदड़ से गई है कई लोगों की जान
त्योहार या ख़ास दिनों में हादसों का सिलसिला नया नहीं है, पर कुछ दिनों में सारी व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो जाती हैं. इसी साल के पहले दिन ही माता वैष्णो देवी मंदिर में भी भारी भीड़ की वजह से भगदड़ मची थी. यहां भी दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ी थी, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई. इससे पहले 2015 में झारखंड के देवघर के बाबा वैद्यनाथ मंदिर में भगदड़ में 11 लोगों की मौत हो गई तो वहीं मध्यप्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ के मंदिर में नवरात्रि में मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हुई. केरल का सबरीमाला मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, हिमाचल प्रदेश का नैना देवी मंदिर या फिर हरिद्वार का हरकी पौड़ी…इन सभी धार्मिक स्थलों पर भी भगदड़ के मामले सामने आए हैं…जिनमें श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ी है.

हादसों से सबक लेना जरूरी
इन हादसों से सबक़ लेना ज़रूरी है. जैसे खाटू श्याम में हुई भगदड़ के बाद राजस्थान सरकार ने नया प्रोटोकॉल बनाया है. खाटू श्याम मंदिर को शनिवार, रविवार, सरकारी छुट्टी या किसी भी त्योहार पर चौबीसों घंटे खुले रखने के आदेश दिए गए हैं. यानि खाटू श्याम के सोने का वक़्त 6 घंटे से घटाकर सिर्फ 1 से 2 मिनट कर दिया गया है, जबकि भोग का वक्त आधे घंटे से घटाकर 15 मिनट कर दिया गया. खाटू श्याम मंदिर में देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. इसका सबसे बड़ा फ़ायदा ये होगा कि पट बंद रहने के दौरान मंदिर के अंदर भारी भीड़ इकट्ठा नहीं हो पाएगी. मुझे लगता है कि इस तरह के उपाय दूसरे मंदिरों में भी लागू किए जा सकते हैं.

मंदिरों में प्रवेश के लिए हो टोकन की व्यवस्था
यूपी के पूर्व आईएएस अधिकारी दिनेश कुमार सिंह के मुताबिक़ “प्रशासन के लिए मंदिरों में भीड़ का पूर्वानुमान बेहद जरूरी है. मंदिर परिसर में लिमिट से ज़्यादा लोगों को एंट्री नहीं मिलनी चाहिए. बिना लाइन लगाए या टोकन व्यवस्था के बिना मंदिर में प्रवेश नहीं मिलना चाहिए. “ दिनेश कुमार सिंह चित्रकूट धाम मंडल के कमिश्नर रह चुके हैं जिसमें कई बड़े धार्मिक स्थल और मंदिर हैं. उनसे पूछा गया कि क्या मंदिरों में इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार किया जाना चाहिए तो उन्होंने बताया कि “पिछले कुछ वर्षों में काशी, मथुरा, अयोध्या जैसे बड़े धार्मिक स्थलों में काफी काम हुआ है. लेकिन भीड़ मैनेजमेंट काफ़ी हद तक ख़ास दिनों में आने वाली भक्तों की तादाद पर निर्भर करता है.”

काशी विश्वनाथ जैसी हो व्यवस्था
वहीं उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी ए के जैन के मुताबिक़ “काशी विश्वनाथ में जिस तरह दर्शन की ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा है उसी तरह बांके बिहारी मंदिर में भी ये व्यवस्था की जाए जिससे सीमित लोग रहें और ढंग से दर्शन कर सकें.” प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की राय साफ़ है कि पहला लक्ष्य यही होना चाहिए कि बहुत बड़ी तादाद में भक्तों को मंदिर परिसर नहीं पहुंचने देना चाहिए. क्योंकि एक बार अगर वो मंदिर के अंदर पहुंच गए तो उन्हें दर्शन से रोक पाना बहुत ही मुश्किल है.

(Disclaimer: यह लेखक की निजी राय है, इससे News18 का कोई लेनादेना नहीं है) 

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