मुलायम सिंह यादव: दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए नेताजी, तब लालू यादव बने थे राह का रोड़ा!


हाइलाइट्स

मुलायम सिंह यादव के जीवन में दो बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर आया, लेकिन नहीं बन पाए.
लालू प्रसाद यादव के विरोध के कारण दो-दो बार प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे मुलायम सिंह यादव.
सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर मुलायम सिंह यादव ने पीएम बनने से रोक दिया.

लखनऊ. समाजवादी पार्टी के संस्थापक व संरक्षक रहे मुलायम सिंह यादव को उनके समर्थक व चहेते आजीवन नेताजी कहकर संबोधित करते रहे हैं. नेताजी अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं. उनकी अमिट तस्वीरें धरतीपुत्र के जिक्र के साथ कई कहानियां सुनती-सुनाती रह जाएंगी. मुलायम सिंह से जुड़े कुछ ऐसे ही किस्सों का जिक्र उनके अंतिम यात्रा पर चले जाने के बाद भी किया जा रहा है. इनमें एक किस्सा यह था कि कैसे वे दो बार भारत के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए.

पहला वाकया साल 1996 का है. इस साल कांग्रेस की करारी हार हुई थी और भारतीय जनता पार्टी की 161 सीटें आई थीं. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बहुमत नहीं जुटा पाने के कारण 13 दिन में ही गिर गई. मुलायम सिंह यादव का दामन पाक-साफ था. तब लेफ्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत मुलायम सिंह यादव का नाम आगे बढ़ा रहे थे; लेकिन लालू प्रसाद यादव विरोध में खड़े हो गए. इसके बाद किसान नेता एच डी देवगौड़ा को गठबंधन ने प्रधानमंत्री पद की कमान सौंप दी. ऐसे में 1996 में मुलायम सिंह यादव का सपना साकार होते होते रह गया था.

दूसरा मौका वर्ष 1999 में तब आया जब मुलायम फिर पीएम पद की रेस में आ गए. मुलायम सिंह कन्नौज और संभल सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे. इस दौरान उनका नाम फिर प्रधानमंत्री पद की रेस में आगे आया. खूब चर्चा में भी रहे लेकिन, इस बार भी लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, चंद्रबाबू नायडू और वी पी सिंह जैसे नेताओं के विरोध के चलते वे प्रधानमंत्री नहीं बन पाए.

मुलायम सिंह के सबसे बड़े सियासी सपने को तोड़ने वाले लालू यादव थे. हालांकि, मुलायम सिंह ने वक्त बीतने के साथ उन्हें माफ कर दिया. दोनों आगे चलकर समधी भी हो गए, लेकिन नेताजी के मन में पीएम न बन पाने का एक मलाल साथ ही रह गया. मुलायम सिंह ने इसको लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा था,

”इसके बाद और भी बड़ा काम हुआ. अब ज्योति बसु तो जीवित नहीं हैं; जिन्होंने मेरे पीछे फैसला कर लिया. फारूक अब्दुल्ला समेत कई नेता इस बात के इंतजार में थे कि अगर मुलायम प्रधानमंत्री बने; तो डिप्टी पीएम हम बनेंगे. उन्होंने हमें धोखा नहीं दिया; बल्कि खुद धोखा खा गए. हमें तो अब कोई प्रधानमंत्री बनने की इच्छा नहीं है.”

मुलायम सिंह की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा तो पूरा नहीं हो पाई; मगर ऐसा भी मौका आया जब नेता जी ने सोनिया गांधी के पीएम बनने के उम्मीदों पर पानी फेर दिया. वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 17 अप्रैल 1999 को लोकसभा में विश्वास मत हार गए. इसके फौरन बाद सोनिया गांधी ने केंद्र में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया. सोनिया गांधी के पास 272 सांसद थे. लेकिन, ऐन वक्त पर मुलायम सिंह और शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे का मुद्दा छेड़ कर उनके सपनों पर पानी फेर दिया.

सोनिया गांधी का नाम कांग्रेस गुट की ओर से बढ़ाया गया कि वह प्रधानमंत्री बनें. उसमें भी विपक्षी दलों के सहयोग की जरूरत थी. मुलायम सिंह से जब उनका पक्ष लिया गया तो वह सोनिया गांधी को पीएम बनाने की बात पर सहमत नहीं थे. मुद्दा फिर वही सोनिया गांधी का विदेशी मूल का होना था. ऐसे भी मुलायम सिंह यादव और राम मनोहर मनोहर लोहिया का जो सिद्धांत था, वह गैर कांग्रेसवाद का सिद्धांत था.

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट कहते हैं,

”राम मनोहर लोहिया के आंदोलन से मुलायम सिंह यादव कांग्रेस के एकाधिकार को खत्म करना चाहते थे. समाजवादी पार्टी लोहिया के इसी आंदोलन की उपज थी. आज भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सहज संबंध नहीं है और न हो सकता है. हालांकि 2017 में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा, लेकिन तब भी मुलायम इस गठबंधन से सहमत नहीं थे.”

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट कहते हैं, ”मुलायम सिंह यादव भले ही देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाए, लेकिन उनका सियासी कद इतना बड़ा है कि पीएम पद के मायने नहीं रह जाते. मुलायम अब पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं, लेकिन उनका किरदार किस्सागोई में हमेशा जिंदा रहेगा.”

Tags: Chandrababu Naidu, Lalu Prasad Yadav, Lucknow news, Mulayam Singh Yadav, Sharad pawar, Sonia Gandhi, UP news, UP politics



Source link