Holi 2022: पीलीभीत में मनाई जाती है अनोखी होली, रंग खेलने के साथ हुरियारे देते हैं मुस्लिमों को गाली


क़याम रज़ा
पीलीभीत.
पूरे देश में रंगों का त्योहार होली (Holi 2022) मनाने का तरीका अलग-अलग है. कहीं फूलों से होली खेली जाती है तो कहीं लट्ठमार होली खेली जाती है, लेकिन पूरनपुर तहसील क्षेत्र के ग्राम शेरपुर कलां में होली खेलने की परंपरा सबसे अनूठी है. शेरपुर में होली के दिन रंग खेलने के साथ-साथ गालियां भी दी जाती हैं. यहां पहले हिन्दू मुस्लिमों को रंग लगाते हैं और फिर उनको गाली देते हैं. अच्छी बात ये है कि मुसलमान इससे नाराज नहीं होते हैं, बल्कि हंसकर होली की बधाई देते हैं.

चालीस हजार की आबादी वाले इस गांव में दो हजार के आस-पास हिंदू परिवार भी रहते हैं. जब होली आती है तो हिंदू ही नहीं मुस्लिम समुदाय के लोग होलिका की तैयारी में सहयोग से कभी पीछे नही हटते. असली नजारा तो होली के दिन दिखता है. धमाल में शामिल रंग-गुलाल से सराबोर हुरियारों की टोलियां मुस्लिम परिवार के घरों के दरवाजे पर पहुंचती है और फिर गालियां देनी शुरू कर देती है. गालियां देते हुए मुस्लिमों से फगुआ वसूलते हैं. प्यार भरी इन गालियों को सुनकर मुस्लिम समुदाय के लोग हंसते हुए फगुआ के तौर पर कुछ नकदी हुरियारों को भेंट करते हैं.

पूरनपुर तहसील की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत का रुतबा रखने वाला ये गांव नवाबों का रहा है. कस्बा पूरनपुर से सटा है ये गांव. नवाब खानदान के मरहूम शमसुल हसन खां सांसद भी रहे हैं. तनाव न हो, इसलिए होली के दिन यहां पुलिस भी तैनात रहती है. हालांकि, ऐसी स्थिति यहां आजतक नहीं बनी. खास बात यह है कि इस गांव मे कभी भी सांप्रदायिक तनाव की समस्या नहीं आती है.

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होली पर हिंदू समुदाय के लोग हुड़दंग करते हैं, लेकिन कोई इसका बुरा नहीं मानता. होलिका स्थल की साफ-सफाई से लेकर अन्य तैयारियों में मुस्लिमों का पूरा सहयोग रहता है. रंग वाले दिन सुबह आठ बजे से धमाल शुरू हो जाता है. हुरियारों की टोली सबसे पहले नवाब साहब की कोठी पर पहुंचती है. गेट पर खड़े होकर हुरियारे गालियां देना शुरू करते हैं. ये इस बात का संकेत होता है कि हुरियारे आ चुके हैं. अब उन्हें फगुआ देकर विदा करना है. नवाब की कोठी से फगुआ वसूलने के बाद टोली आगे बढ़ जाती है. इसी तरह से गांव के अन्य प्रभावशाली मुस्लिमों के परिवारों के घरों के दरवाजे-दरवाजे पहुंचकर गालियां देते हैं और फगुआ वसूलने का सिलसिला चलता रहता है.

इस गांव की होली आस-पास के इलाकों में चर्चा का विषय बनी रहती है. इस गांव की हिंदू-मुस्लिम एकता की लोग मिसाल देते हैं. होली पर जब धमाल निकलती है तो मुस्लिम लोग खुद उसकी अगुआई करते हैं. ढोल नगाड़े के साथ गाते बजाते, गाली देते लोग हुड़दंग करते हिंदू समाज के लोग पीछे रहते हैं. मौके पर अधिकारी भी रहते हैं, लेकिन ये दिन होली के रंग में रंगा रहता है. कोई अनहोनी नहीं होती क्योंकि यहां की प्रथा सालों से चली आ रही है.

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गांव के बुजुर्गों का कहना है कि होली का ये रिवाज नवाबी दौर से ही चला आ रहा है. पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन रिवाज कायम है. वो प्यार में गाली देते हैं, हम लोगों ने गले लगाकर होली की बधाई के साथ कुछ रुपये दे भी देते हैं. ग्राम प्रधान अंजुम बेगम के पति तकी खां कहते हैं कि हमारे गांव की होली अनोखी है. हम लोग होली पर हिंदुओं का पूरा सहयोग करते हैं. होली के त्योहार को लेकर गांव में साफ-सफाई के साथ उनकी हर तरह से मदद करते हैं.

वहीं कैफ खां कहते हैं कि हुरियारे तो त्योहार की खुशी में गालियां देते हैं, उसका बुरा क्या मानना. ये तो नवाबी दौर से परंपरा चली आ रही है, जिसे पूरा गांव निभाता है. इससे आपसी सौहार्द और मजबूत होता है. अमानत रसूल कहते हैं बरसों से चल रही इस परंपरा को मुस्लिम समाज बखूबी निभाता है. गांव में हिंदू-मुसलमान भाईचारा सद्भावना से हमेशा से रहते चले आ रहे हैं. हिंदू समाज के लोग हमारे त्योहारों में भी सहयोग करते हैं मुस्लिम समाज भी उनके त्योहारों में सहयोग करता है.

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