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डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के 4 महिलाओं और 3 पुरुष सहित कुल 7 पहलवान टोक्यो ओलंपिक 2020 (Tokyo Olympic 2020) में पदक की दावेदारी पेश करने के लिए टोक्यो पहुंच चुके हैं। आइए जानते हैं मिट्टी से मैट तक का सफर तय करने वाले अपने चैपियन्स के बारे में-

बजरंग पूनिया

अपने मेडल कैबिनेट में एकमात्र बचे ओलंपिक मेडल को जोड़ने के लिए, बजरंग पूनिया (Bajrang Punia) 2020 टोक्यो ओलंपिक(Tokyo Olympic 2020) में उतरेंगे। 7 साल की उम्र में कुश्ती (Wrestling) की शुरूआत करने वाले पूनिया को अपने पिता का बहुत सहयोग मिला जो खुद भी एक पहलवान थे। 
पुनिया ने जिस भी टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है वहां अपनी छाप छोड़ी है और अब इस पहलवान के पास ओलंपिक पदक (Olympic Medal) जीतकर अपने सपनों को साकार करने का पूरा मौका है। पूनिया पहली बार ओलंपिक के मैदान में किस्मत आजमाने जा रहे हैं।

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विनेश फोगाट

भारत में कुश्ती के सबसे बड़े खानदान से ताल्लुक रखने वाली विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) से देश को पदक की उम्मीद होना लाजमी हैं। 2016 में घुटने की चोट के कारण विनेश को रियो ओलंपिक(Rio Olympic 2016) से बाहर होना पड़ा था। 
रेसलर्स गीता(Geeta Phogat) और बबिता फोगाट (Babita Phogat) के पिता महावीर सिंह ने विनेश को भी रेसलिंग (Wrestling) के गुण सिखाने शुरू कर दिए। उन्हें भी लड़कों से रेसलिंग करनी पड़ती थी क्योंकि और कोई लड़की उस समय रेसलिंग में दिलचस्पी नहीं दिखाती थी इतनी मुश्किलों के बावजूद विनेश ने कभी हार नहीं मानी। विनेश पिछली बार भी ओलंपिक के मैदान में पहुंची थीं पर घुटने की चोट के कारण उन्हें खेल से बाहर होना पड़ा। पर इस बार विनेश की कोशिश होगी की पुरानी नाकामी का दाग धो सकें।

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अंशु मलिक

जब अंशु मलिक (Anshu Malik) 12 साल की थी तो उन्होंने अपनी दादी से कहा कि वह एक पहलवान (Wrestler) बनना चाहती हैं, तो उनके पिता धर्मवीर को खुशी हुई कि उनकी बेटी अपने पिता के अधूरे सपने को साकार करना चाहती है। 2012 में जब अंशु ने जोर देकर कहा तो पिता ने उन्हें  छोटे भाई शुभम की तरह, निदानी स्पोर्ट्स स्कूल में पहलवान के रूप में ट्रेनिग दिलाना शुरू कर दिया। छह महीने में, धर्मवीर ने पाया कि उनकी “छोरी (बेटी)” किसी “छोरों” (लड़के) से कम नहीं थी। 

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सीमा बिस्ला

टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympic 2020) का कोटा हासिल करने वालीं पहलवान सीमा बिस्ला (Seema Bisla) हरियाणा (Haryana) के रोहतक (Rohtak) जिले के एक छोटे से गांव गुढ़ान की रहने वाली हैं। बचपन में जब उन्होंने कुश्ती सीखने के लिए अखाड़े में कदम रखा तो गांव वालों ने तानों से उनका स्वागत किया। वे सीमा के पिता से बोले- छोरियों का काम न है कुश्ती लड़ना, बेटी को घर के काम-धंधा में लगा। लेकिन कबड्डी खिलाड़ी रह चुके सीमा के पिता ने किसी की एक न सुनी और बेटी को कुश्ती खेलना जारी रखने को कहा। बड़ी बहन ने भी सीमा का पूरा साथ दिया और उन्हें रोहतक में अपने घर पर रखकर प्रैक्टिस व पढ़ाई कराई। सीमा ने भी पिता और बहन को निराश नहीं किया। राष्ट्रीय स्तर के कई खिताब अपने नाम करने के बाद सीमा ने अब ओलंपिक का कोटा हासिल कर आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है।

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सोनम मलिक

सोनम (Sonam Malik)  हरियाणा के सोनीपत से हैं। कुश्ती उन्हें विरासत में मिली। इनके पिता राजेंदर भी कुश्ती किया करते थे। 12 साल की उम्र से कुश्ती कर रही सोनम के जीवन में कठिन दौर तब आया जब उनके नसों ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें लकवा मार गया। उनके कोच ने बताया था कि सोनम हाथ भी नहीं हिला पा रही थीं और डॉक्टरों को भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। डॉक्टरों का कहना था कि अगर किस्मत होगी तो वह रिकवर हो जाएगी।

सोनम के पिता महंगा इलाज अफॉर्ड करने मे असमर्थ थे, अपर्याप्त इलाज के बावजूद सोनम ने मेट पर वापसी की जीतोड़ कोशिश की और वो सफल भी हुईं। अप्रैल 2021 में, सोनम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली भारत की सबसे कम उम्र की महिला पहलवान (Youngest female Wrestler Qualified for Olympic) बनीं और इतिहास रच दिया।

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रवि कुमार दहिया

रवि कुमार दहिया (Ravi Kumar Dahiya) हरीयाणा (Haryana) के सोनिपत (Sonipat) जिले के नहरी गांव से आते हैं। रवि ने ट्रेनिंग सतपाल सिंह से ली है। सतपाल सिंह ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार (Olympic medalist Sushil Kumar) के भी कोच रहे हैं। रवि के पिता राकेश दहिया एक किसान हैं जो किराए के धान के खेतों में काम करते थे। वह एक दशक से भी ज्यादा समय तक, दूध और फल देने के लिए हर दिन नाहरी से स्टेडियम जाते थे, जो रवि की कुश्ती डॉइट का हिस्सा थे।

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दीपक पूनिया

विश्व चैंपियनशिप 2019 (World Championship 2019) में रजत जीतने वाले भारत के स्टार पहलवान दीपक पूनिया (Deepak Punia) काफी गरीब परिवार से आते  हैं। उन्होंने नौकरी पाने के लिए ही कुश्ती शुरू की थी ताकि परिवार की देखभाल कर सकें। वह केतली पहलवान के नाम से मशहूर हैं। दरअसल पहलवान को दूध बहुत पसंद है। उन्हें सरपंच ने दूध की केतली ही पकड़ा दी। पूनिया ने भी एक सांस में पूरा दूध गटक लिया। बस उसके बाद से ये नाम उनका पर्याय बन गया।

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