Ayodhya: भगवान मतगजेंद्र को कहा जाता है अयोध्या का ‘कोतवाल’, जहां पूजा के बिना नहीं होता शुभ काम


रिपोर्ट- सर्वेश श्रीवास्तव

अयोध्या. राम नगरी अयोध्या में स्थित कई ऐसे प्रमुख और ऐतिहासिक धरोहर हैं, जहां आज भी त्रेतायुग की झलक दिखाती हैं. हम बात कर रहे हैं राम जन्म भूमि के रामकोट में स्थित भगवान मतगजेंद्र के ऐतिहासिक मंदिर (Matgajendra Mandir) की, जिन्‍हें अयोध्या का कोतवाल (Kotwal) भी कहा जाता है. वहीं, पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम जब लंका पर विजय प्राप्त कर पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे थे तो उनके साथ वानर सेना समेत राक्षस जाति के विभीषण और उनके पुत्र भी अयोध्या आए थे. अयोध्या में भगवान राम के साथ काफी समय व्यतीत करने के बाद बाकी सभी लोग अपने-अपने घर लौट गए, लेकिन हनुमान और विभीषण के पुत्र मतगजेंद्र भगवान राम की सेवा करने के लिए अयोध्या में ही रुके थे.

जब प्रभु श्री राम जब साकेत गमन के लिए जाने लगे तो हनुमान को अयोध्या का राजा और विभीषण के पुत्र मतगजेंद्र को अयोध्या का कोतवाल बनाया था. साल में एक बार होली के बाद पहले मंगलवार को मतगजेंद्र पर मेला लगता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान मतगजेंद्र की पूजन अर्चन के लिए आते हैं.

जानिए रामलला के मुख्य ने क्या कहा
रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि कोतवाल जो होता है वह रक्षक के साथ व्यवस्था भी करता है. रक्षा और व्यवस्था के लिए अयोध्या में विभीषण के पुत्र मतगजेंद्र को स्थापित किया गया था. भगवान राम ने मतगजेंद्र को आशीर्वाद दिया था कि जो भी भक्त तुम्हारा दर्शन करेगा उनको मनवांछित फल प्राप्त होगा. राक्षसी प्रवृत्ति समाप्त होने के बाद योग में आने के बाद मतगजेंद्र की पूजा होतीहै.

कब होती है भगवान मतगजेंद्र की आरती
भगवान मतगजेंद्र की मंगला आरती सुबह 6 बजे और सांयकाल की आरती शाम 7 बजे होती है.

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भाव भय दारुणम् ।
नवकंज लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कन्जारुणम ॥1॥
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम ।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरम् ॥2॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम् ।
रघुनंद आनंदकंद कौशलचंद दशरथ नन्दनम॥3॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं ।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धुषणं ।।4।।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनम् ।
मम् हृदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम् ॥5॥
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरों ।
करुना निधान सुजान सिलु सनेहु जानत रावरो ॥6॥
एही भांती गौरी असीस सुनि सिय सहित हिय हरषी अली ।
तुलसी भवानी पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥7॥
जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥

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