Aligarh News:अफसरों की आंखें बनीं मशीन, दे रहीं वाहन के फिट या अनफिट का सर्टिफिकेट – Eyes Of The Officers Giving The Certificate Of Fit Or Unfit Of The Vehicle


अनफिट वाहन चल रहे शहर में
– फोटो : नितिन गुप्ता

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अलीगढ़ में वाहनों की फिटनेस को परखने का इंतजाम अलग ही है। आधुनिक मशीनों की जगह अफसरों की आंखें ही वाहन के फिट या अनफिट होने का प्रमाण पत्र दे रही हैं। वाहन में बिना हेड लाइट, बैक लाइट, इंडीकेटर, फॉग लाइट, रिफलेक्टर को जांचे परखे ही फिटनेस का प्रमाण पत्र थमाया जा रहा है। ऐसे में जर्जर एवं अनफिट वाहन बिना रोक-टोक के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। अधिकांश दुर्घटनाएं वाहनों की जर्जर हालत के चलते होती हैं। 

आंकड़ों की बात करें तो कुल सड़क दुर्घटनाओं में से करीब 2.4 फीसद वाहनों की जर्जर हालत के चलते होती हैं। जिले में बीते साल 2022 में 450 से अधिक सड़क हादसों में 289 लोग अकाल ही मौत के मुंह में समा गए। 392 लोग इन हादसों में घायल हो जाने पर जीवन भर का दंश झेलने को मजबूर हो गए हैं।

यातायात नियमों की अनदेखी
फिटनेस के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर दी जा रही है। ऐसे में कंडम हो चुके तमाम वाहन सड़क पर दौड़ते देखे जा सकते हैं। यातायात नियमों की अनदेखी, जर्जर सड़कें, ओवरलोड वाहन के साथ तेज रफ्तार भी सड़क हादसों की बढ़ती संख्या के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। जिले में कंडम वाहनों के सड़क पर दौड़ने एवं धुआं उगलने के बाद भी उनके जब्तीकरण की कार्रवाई नहीं होती है। प्रदूषण जांच के नाम पर भी खानापूर्ति हो रही है। सिर्फ वाहन का नंबर बता देने भर से ही सुविधा शुल्क लेकर प्रदूषण जांच का प्रमाण पत्र हाथों हाथ जारी किया जा रहा है। 

आरटीओ एवं ट्रैफिक पुलिस द्वारा वाहन चेकिंग अभियान के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। जिले भर में फिटनेस न कराने वाले करीब 30 हजार वाहनों को कंडम घोषित किया जा चुका है। इनमें करीब दस हजार ऑटो तो शहर में बिना किसी भय के सवारियों को इधर से उधर ले जाने के काम में जुटे हुए हैं। नियमों की बात करें तो नए व्यावसायिक वाहन की फिटनेस प्रत्येक दो साल में एवं उसके बाद हर साल जांच कर प्रमाण पत्र जारी होना चाहरिए। आरटीओ में दलालों के जरिये जुगाड़ कर बिना वाहनों की पड़ताल किए ही प्रमाणपत्र जारी हो रहे हैं।

यह है नियम
वाहन की फिटनेस में हेड लाइट, बैक लाइट, फाग लाइट, साइड लाइट, पार्किंग लाइट के अलावा रिफ्लेक्टर पट्टी लगी होनी चाहिए। स्कूलों के अलावा निजी व सरकारी वाहनों में इस तरह की कमियों को आसानी से देखा जा सकता है। रोडवेज की बसों की जर्जर हालत और भी बदतर हैं। बसों में खिड़कियों के शीशे, फॉग, बैक लाइट दुरुस्त नहीं होती है। फिर भी इन बसों को सड़क पर फर्राटा भरने की अनुमति मिल जाती है। ट्रैक्टर-ट्राली का प्रयोग कृषि कार्य में ही किया जा सकता है, लेकिन ये सड़क पर व्यावसायिक कामों में फर्राटे भरते नजर आते हैं। इन वाहनों को नियंत्रित करना मुश्किल काम है।

अनफिट एवं कंडम वाहनों के जब्तीकरण के साथ ही चालान की कार्रवाई भी की जाती है। समय-समय पर चालकों को यातायात नियमों के पालन के लिए जागरूक किया जाता है। बीते साल भी ऐसे 604 से अधिक वाहनों पर कार्रवाई की गई है। – फरीदउद्दीन, आरटीओ प्रवर्तन

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अलीगढ़ में वाहनों की फिटनेस को परखने का इंतजाम अलग ही है। आधुनिक मशीनों की जगह अफसरों की आंखें ही वाहन के फिट या अनफिट होने का प्रमाण पत्र दे रही हैं। वाहन में बिना हेड लाइट, बैक लाइट, इंडीकेटर, फॉग लाइट, रिफलेक्टर को जांचे परखे ही फिटनेस का प्रमाण पत्र थमाया जा रहा है। ऐसे में जर्जर एवं अनफिट वाहन बिना रोक-टोक के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। अधिकांश दुर्घटनाएं वाहनों की जर्जर हालत के चलते होती हैं। 

आंकड़ों की बात करें तो कुल सड़क दुर्घटनाओं में से करीब 2.4 फीसद वाहनों की जर्जर हालत के चलते होती हैं। जिले में बीते साल 2022 में 450 से अधिक सड़क हादसों में 289 लोग अकाल ही मौत के मुंह में समा गए। 392 लोग इन हादसों में घायल हो जाने पर जीवन भर का दंश झेलने को मजबूर हो गए हैं।

यातायात नियमों की अनदेखी

फिटनेस के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर दी जा रही है। ऐसे में कंडम हो चुके तमाम वाहन सड़क पर दौड़ते देखे जा सकते हैं। यातायात नियमों की अनदेखी, जर्जर सड़कें, ओवरलोड वाहन के साथ तेज रफ्तार भी सड़क हादसों की बढ़ती संख्या के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। जिले में कंडम वाहनों के सड़क पर दौड़ने एवं धुआं उगलने के बाद भी उनके जब्तीकरण की कार्रवाई नहीं होती है। प्रदूषण जांच के नाम पर भी खानापूर्ति हो रही है। सिर्फ वाहन का नंबर बता देने भर से ही सुविधा शुल्क लेकर प्रदूषण जांच का प्रमाण पत्र हाथों हाथ जारी किया जा रहा है। 

आरटीओ एवं ट्रैफिक पुलिस द्वारा वाहन चेकिंग अभियान के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है। जिले भर में फिटनेस न कराने वाले करीब 30 हजार वाहनों को कंडम घोषित किया जा चुका है। इनमें करीब दस हजार ऑटो तो शहर में बिना किसी भय के सवारियों को इधर से उधर ले जाने के काम में जुटे हुए हैं। नियमों की बात करें तो नए व्यावसायिक वाहन की फिटनेस प्रत्येक दो साल में एवं उसके बाद हर साल जांच कर प्रमाण पत्र जारी होना चाहरिए। आरटीओ में दलालों के जरिये जुगाड़ कर बिना वाहनों की पड़ताल किए ही प्रमाणपत्र जारी हो रहे हैं।

यह है नियम

वाहन की फिटनेस में हेड लाइट, बैक लाइट, फाग लाइट, साइड लाइट, पार्किंग लाइट के अलावा रिफ्लेक्टर पट्टी लगी होनी चाहिए। स्कूलों के अलावा निजी व सरकारी वाहनों में इस तरह की कमियों को आसानी से देखा जा सकता है। रोडवेज की बसों की जर्जर हालत और भी बदतर हैं। बसों में खिड़कियों के शीशे, फॉग, बैक लाइट दुरुस्त नहीं होती है। फिर भी इन बसों को सड़क पर फर्राटा भरने की अनुमति मिल जाती है। ट्रैक्टर-ट्राली का प्रयोग कृषि कार्य में ही किया जा सकता है, लेकिन ये सड़क पर व्यावसायिक कामों में फर्राटे भरते नजर आते हैं। इन वाहनों को नियंत्रित करना मुश्किल काम है।

अनफिट एवं कंडम वाहनों के जब्तीकरण के साथ ही चालान की कार्रवाई भी की जाती है। समय-समय पर चालकों को यातायात नियमों के पालन के लिए जागरूक किया जाता है। बीते साल भी ऐसे 604 से अधिक वाहनों पर कार्रवाई की गई है। – फरीदउद्दीन, आरटीओ प्रवर्तन



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